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[२६] इस धोखे से सावधान करने के लिये ही यह परीक्षा की मारहा है और यथार्य वस्तुस्थिति को पाठकों के सामने रखने का यन किया जाता है । अस्तु । ___ अब उस संग्रह को भी बानगी लीजिये जो मजैन विद्वानों के ग्रंथों से किया गया है और जिसके विषय की न कहीं कोई प्रतिज्ञा और में तत्सम्बंधी विद्वानों के नामादिक की कही कोई सूचना ही ग्रंथ में पाई जाती है। प्रत्युत इसके, अनसाहित्य के साथ मिलाकर अश्या जैनाचार्यो के वाक्यानुसार बताकर, उसे भी जैनसाहित्य प्रकार किया गया है। '
अजैन ग्रंथों से संग्रह। (१२) अंजन विद्वानों के ग्रंथों से जो विशाल संग्रह महारकजी ने इस ग्रंथ में किया है उनके सैकड़ों पद-वाक्यों को ज्यों का त्यों अथवा कुछ परिवर्तन के साथ उठाकर रक्खा है-उस सबका पूरा परिचय यदि यहाँ दिया जाय तो लेख बहुत बढ़ नाय, और मुझे इनमें से कितने हा पद-वाक्यों को भागे चलकर, विरुद्ध कायनों के अवसर पर, दिखलाना है-वहाँ पर उनका परिचय पाठकों को मिलेगा ही। अतः यहाँ पर ममने के तौर पर, कुछ थोड़े से ही पयों का परिचय दिया जाता है।
सन्तुष्टी भार्यया मता भनी भाषा तथैव ।। यमिन्नेव फुले नित्य फाल्याणं तत्र वैभुवम् ॥ १-४६ । । यह पथ, जिसमें भार्या से भतार के और भतार से भार्या के नित्य सन्तुष्ट रहने पर कुख में सुनिश्चित रूप से कल्याण का विधान किया गया है, 'मनु' का पचन है, और 'मनुस्मृति' के तीसरे अध्याप में नं०६० पर दर्ज है। वहीं से ज्या का त्यों उठाकर रक्खा गया मासूम होता है।
मात्र भौम तथाऽनयं पायव्यं विन्यमेव च। घाण मानसं चैव सतस्नानान्यनुकमात् ॥ ३-४२० .