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[१४] ४ ॐ ही क्षी मत्री, मैं मुँह धोता हूँ, स्वाहा। ५ ऊँपरम पवित्राय, मैं दन्तपावन (दातन कृया) करता हूँ, स्वाहा।
६ ऊहाँ श्री की एंबई असिनावमा, मैं लान करता हूँ, स्वाहा। • ७ॐ ही, संसार सागर से निकले हुए महन्त भगवान को नमस्कार, मैं पानी से निकलता हूँ, स्वाहा।
ॐ ही ली मवी अहं हंसा परम पावनाय, मैं पस पवित्र करता हूँ, स्वाहा ।
ॐ, हे खेतवर्ण वानी, सर्व उपद्रवों को हरने वाली, सर्व महाजनों का मनोरंजन करने वाली, धोती दुपट्टा धारण करने वाली हंझ में संत में घोती दुपट्टा धारण करता हूँ स्वाहा । १० ॐ मर्मवः स्वः प्रसिधाउसा, मैं प्राणायाम करता हूँ, स्वाहा। ॐही ...,मैं सिरके ऊपर पानी के छोटे देता हूँ, स्वाहा ।
ॐ ही ....मैं चुल्लू में पानी लेता हूँ, स्वाहा। १३ ॐ ही मैं चुल्लू का अमृत (जन ) पीता हूँ, स्वाहा । १४ ॐ ह्रीं अहं, मैं किषाय खोजता हूँ, स्वाहा । १५ऊँ हो अहं मैं हारपासको(भीतर जाने की सूचना देताहूँ,स्वाहा। १६ ॐ ही, मई में मंदिर में प्रवेश करता हूं, खाहा। १७ ॐ ही, मैं मुख पक्ष को उपाइता हूँ, स्वाहा । १८ ॐ ही, आई, मैं यागभूमि में प्रवेश करता हूँ, स्वाहा । १६ ॐ ही. मैं बाजा बनाता हूँ, स्वाहा। २. ॐ ही...मैं पृथ्वी को पानी से धोकर शुद्ध करता हूँ, खाहा । २१ ॐ ही अहं हां ठठ, मैं दर्मासन विधाता है, स्वाहा । २२ ॐ ही अहं निस्साही हूँ फट् मैं दर्मासन पर बैठता हूँ, स्वाहा।
२३ ॐ ही ही हूँछौंः , श्री हन्त भगवान को नमस्कार, मैं शुद्ध जल से बरतन धोता हूँ, स्वाहा । ।