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(१२) माई! आज आनन्द कछु कहे न बने । टेक ॥ नाभिराय मरुदेवी-नंदन, व्याह उछाह त्रिलोक भने । माई.॥१॥ सीस मुकट गल माल अनूपम, भूषन वसनन को वरनै। माई.॥२॥ गृह सुखकार रतनमय कीनों, चौरी मंडप सुरगननै॥माई.॥३॥ 'द्यानत' धन्य सुनंदा-कन्या, जाको आदीश्वर परनै । माई.॥ ४ ॥
हे मां! आज के आनंद का वर्णन कुछ कहते नहीं बनता अर्थात् पूर्णरूपेण कहा नहीं जा सकता, बहुत कुछ अनकहा रह जाता है।
श्री नाभिराय और मरुदेवी के पुत्र श्री ऋषभदेव के विवाहोत्सव के अवसर पर तीन लोक में अति उत्साह है।
मस्तक पर मुकुट, गले में धारण की हुई सुन्दर माला व वस्त्र आभूषण की सुन्दरता का कोई कैसे वर्णन करे।
देवों द्वारा सारा घर रत्नमय रच दिया गया है और मंडप को चउरि को अत्यन्त सजाया गया है।
यानतराय कहते हैं कि वह सुनन्दा नाम की कन्या धन्य है जिससे श्री आदिनाथ ने परिणय किया है।
ग्रानत भ