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एरी सखी! नेमिजी को मोहि मिलावो॥ टेक ॥ व्याहून आये फिर कित धाये, ढूंढि खबर किन लावो॥ एरी.॥१॥ चोवा चन्दन अतर अरगजा, काहेको देह लगावो ॥ एरी, ॥ २॥ 'द्यानत' प्रान बसें पियके दिग, प्रान के नाथ दिखावो। एरी. ॥ ३॥
ए रो सखी'! मुझको नेमिजी से मिला दो।
वे ब्याह करने आए थे, फिर कहाँ चले गए? उनको ढूंढकर उनके समाचार लाओ।
इत्र, चंदन, कपूर आदि सुगंधित द्रव्य अब मेरे शरीर पर क्यों लगाती हो?
द्यानतराय कहते हैं कि मेरे प्राण मेरे प्रिय में बसे हैं। मुझे मेरे प्राणों के नाथ के दर्शन कराओ।
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१. इस भजन में राजुल अपनो सखी से कह रही है।
द्यानत भजन सौरभ