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(१०९) जानौं पूरा ज्ञाता सोई॥ टेक॥ रागी नाहीं रोषी नाहीं, मोही नाहीं होई। जानौं.॥ क्रोधी नाहीं मानी नाहीं, लोभी धी ना ताकी। ज्ञानी ध्यानी दानी जानी, बानी मीठी जाकी । जानौं. ॥१॥ सांई सेती सच्चा दीसै, लोगों का प्यारा।। काहू जीका दोषी नाहीं, नीका पैंडा धारा। जानौं ।। २ ।। काया सेती माया सेती, जो न्यारा है भाई। 'द्यानत' ताको देखै जाने, ताहीसों लौ लाई। जानौं.॥३॥
हे प्राणी, उसे ही पूर्ण ज्ञानी जानी जो रागी नहीं है, द्वेषी नहीं है, जो मोही नहीं है, जिसके क्रोध नहीं है, मान नहीं है, लोभ को बुद्धि नहीं है। जो ज्ञानी है, ध्यानी है, दानी है (अभयदान करनेवाला है) और जिसकी सबको प्रिय लगनेवाली और सबका कल्याण करनेवाली मीठी वाणी है।
जो परमात्मा के जितना/जैसा सच्चा/निर्मल दिखाई दे, जो सब लोगों को प्यारा लगे । जो किसी जीव की विराधना का दोषी नहीं है, उसे ही पूर्ण ज्ञानी जानो, उनका पदानुगमन/अनुसरण ही उचित है ।
जो काया से और माया से, सबसे न्यारा है, चैतन्य रूप है । द्यानतराय कहते हैं कि उसको देखो, उसको जानो, उसके गुणों को जानो, उससे लौ लगाओ, उसका हो अनुसरण करो, उसके प्रति भक्ति से समर्पित होवो।
सांई = स्वामी, ईश्वर, परमात्मा।
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घानत भजन सौरभ