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(३०१) तैं चेतन करुणा न करी रे॥टेक ।। यातें पूरी आव न पावै, आरंभ रीति हिये पकरी रे॥ .. ॥१॥
आपन तिन सम दुःख न सहिकै, औरन मारत लै लकरी रे॥ तैं.॥ २॥ 'धानत' आप समान सबै हैं, कुंथू आदिक अन्त करी रे॥ तें. ॥ ३॥
अरे चेतन ! तुमने करुणा धारण नहीं की। इसी कारण तू स्वयं पूरी आयु नहीं पाता, तु अपनी ही आयु का घात करता है। तू संक्लेश के कारण अपनी आयु पूरी नहीं भोग पाता तथा भाँति-भांति के आरंभ करने के विचार हुद्दा में करता रहा है... ...
तू स्वयं तो तिनके के समान दुःख अर्थात् थोड़ा-सा भी दुःख सहन नहीं कर सकता और दूसरों को लकड़ी लेकर मारने को उद्यत होता है अर्थात् उन्हें दुःख पहुँचाने को तैयार होता है ! ___ द्यानतराय कहते हैं कि सब जीव तेरे अपने समान ही हैं, चाहे वह छोटेसे-छोटा कुंथु हों अथवा हाथी जैसा बड़ा जीव ही क्यों न हो?
द्यानत भजन सौरभ
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