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और मरण का भय नहीं होता। अर्थात् उनका जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो जाता है।
हे जिनेन्द्र ! आपका समवशरण सम्पूर्ण/अत्यन्त शोभायुक्त हैं। उस समवशरण में विराजित आपके दर्शनमात्र से क्रोध मान माया और लोभ आदि कषायों पर विजय प्राप्त होती है।
हे जिनेन्द्र ! हम आपके गुणों की स्तुति कैसे करके गावें ? गणधर भी आपके गुणों का पार नहीं पा सके इसलिए हम तो आपका गुणगान, आपकी स्तुति करने में अपने को असमर्थ पाते हैं ।
हे करुणासाग अब हम पर भी वरूण बी अपने को, यानतराय को, अपने भक्त को सुख प्रदान कीजिए ।
द्यानत भजन सौरभ
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