Book Title: Dyanat Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachandra Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajkot

View full book text
Previous | Next

Page 425
________________ द श्र न प १४. दरसन तेरा मन आहे १४९. दास तिहारो हूँ १५०. दिये दान महासुख पावे १५९. दुरगति गमन निवारिये १५२. देखा मैंने नेमिजी प्यारा १५३. देखे जिनराज आज १५४. देखे धन्य घरी १५५. देखे सुखी सम्यक्वान १५६. देखो नाभिनंदन जगवंदन १५७. देखो भाई आतमदेव विराजे १५८. देखो भाई श्रीजिनराज १५९. देखो भेक फूल १६०. धनि तैं साधु रहत वनमांहि १६१. धनि धनि तैं मुनि गिरिवनवासी १६२. धिक धिक जीवन समकित बिना १६३. नगर में होरी हो रही हो १६४. नहिं ऐसो जनम बारम्बार ९६५. निज जतन करो १६६. निरविकल्प ज्योति प्रकाश रही १६७. नेम जी तो केवलज्ञानी १६८. नेमि नवल देखे चल री १६९. नेमि मोहि आरति तेरी हो १७० नेमीश्वर खेलन चले १७१. परमगुरु बरसत ज्ञान झरी १७२. परमारथ पंथ सदा पकरी १७३. परमेसुर की कैसी रौत १७४ पायोजी सुख आतम लखि के १७५. पावांपुर भवि बंदो जाय १७६. पिय वैराग्य लियो है १७७. पिय वैराग्य लियो है द्यानत भजन सौरभ १९० १९१ २४४ २४५ ३७ ३९ १९२ २२२ ६२ ६५ ११३ १२६ ८ ९ १२७ २२३ २२४ ११४ १९३ १९४ २७९ २८० २४६ २२० २२१ २८१ २८२ २४८ ११५ ४६ ४७ ४८ ३१० ३२१ ३२२ २८३ ३०९ ३५८ ૨૪૭ २८४ २८५ १२८ ४९ ५० ५१ ३५९ ३१४ ३६४ २४९ २८६ २०० २३० ११६ १२९ ६३ ६६ ४० ४३ ४१ ४४ ३९१

Loading...

Page Navigation
1 ... 423 424 425 426 427 428 429 430