Book Title: Dyanat Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachandra Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajkot

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Page 429
________________ ३०७ ल २६९. लगन मोरी पारस सौं लागी ५९ ६२ २७०. लाग रह्यो मन चेतन सौं जी १३१ १६१ २७१. लागा आतमराम सौं नेहरा १४१ १६३ २७२. लागा आतम सौं नेहरा १४० १६२ .::. . . . .. व २७३, विपत्ति में धर धीर २७४. वीतराग नाम सुमर २१४ २४४ २७५. वीर री पीर कासौ कहिये २६७ ३०८ २७६. वे कोई निपट अनारी १६० १८६ २७७, वे परमादी ते आतमराम न जान्यौ १४२ १६४ २७८. वे प्राणी सुज्ञानी २८१ ३३३ २७९. वे साधो जन गाई ३०३ ३५१ श २८०. शरण मोहि वासुपूज्य जिनवर की २२ २४ २८१. शुद्ध स्वरूप को वंदना हमारी १५४ १७९ २८२. श्री आदिनाथ तारण तरण २८३. श्री जिनदेव छाड़े हो । २२२ २५३ २८४. श्री जिनधर्म सदा जयवन्त १५३ १७८ २८५, श्री जिननाम अधार १८३ २१३ २८६. श्री जिनराय मोहे भरोसो २२३ २५५ स २८७. सच्चा साईं तू ही है मेरा २१७ २४७ २८८. सबको एक ही धर्म सहाय १४३ १६५ २८९. सब जग को प्यारा चेतनरूप १४४ १६६ २९०, सबमें हम, हममें सब जान १४५ १६७ २९१. सबसो छिमा छिमा २९६ ३४३ २९२. समझत क्यों नहि बानी २६८ २९३. साधजी ने वाणी तनिक २९० २९४. साधो छोड़ो विषय विकारी २९९ ३४६ २९५. सांचे चन्द्रप्रभु सुखदाय २९६. सुन जैनी लोगों ज्ञान को पंथ कठिन है १४७ १७२ २९७, सुन जैनी लोगों ज्ञान को पंथ सुगम है २९८. सुन चेतन एक बात हमारी १४६ १७० १४८ १७३ द्यानत भजन सौरभ ३९५

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