________________
लागत के सब नाणी समाविकार व भव सम्पदा को पाना चाहते हैं परन्तु उन्होंने/हे मुनिराज ! आपने उसे तृणवत्/तिनके के समान तुच्छ समझकर त्याग दिया है। मुनिराज की आरती की जाती है।
आप सुख और दु:ख को, मित्र और शत्रु को समान समझते हैं, लाभ और अलाभ (हानि) को एक-सा मानते हैं। मुनिराज को आरती की जाती है।
हे मुनिराज ! आपने छहों काय के जीवों की पीड़ा को दूर करने का व्रत लिया है और आप छोटे-बड़े सभी जीवों को अपने समान ही जीव समझते हैं अर्थात् सबके प्रति करुणा और साम्यभाव रखते हैं, मुनिराज की आरती की जाती है।
द्यानतरायजी कहते हैं इस आरती को जो भी पढ़ता है, गाता है, समझता है और मन में जीवन में धारण करता है वह स्वर्ग और मोक्ष के सुख को पाता है।
शानत भजन सौरभ