Book Title: Dyanat Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachandra Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajkot

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Page 402
________________ ( ३१८ ) एरे वीर रामजीसों कहियो बात ॥ टेक ॥ लोक हिमको छांदी, धरम न तजियो भात ॥ ए रे ॥ १ ॥ आप कमायो हम दुख पायो, तुम सुख हो दिनरात ॥ ए रे. ॥ २ ॥ 'द्यानत' सीता थिर मन कीना, मंत्र जपै अवदात ॥ ए रे ॥ ३ ॥ रावण के घर रहने के कारण सीता को लोक-निंदावश घर से निर्वासित कर दिया गया। सारथि राम के आदेश के अनुसार सीता को जंगल में छोड़कर वापस आने लगा तो सीता ने उसके साथ अपने पति श्रीराम के लिए संदेश भिजवाया कि ओ भाई ! श्रीराम से इतनी-सी बात कह देना कि तुमने लोक निन्दा के भय से हमको छोड़ दिया, परन्तु ऐसे ही किसी के भी कहने से घबराकर कभी धर्म को मत छोड़ देना ! हमने जो कमाया, कर्म किया वह ही हमने भोगा, उपभोग किया अर्थात् दु:ख उपजाये तो दुःख पाए । पर आप दिन-रात सुखी रहें, ऐसी भावना है। ग्रानतराय कहते हैं कि इस प्रकार सीता ने अपने मन को स्थिर किया और पवित्र / निर्मल मंत्रों के जपन में लग गई। अवदात ३६८ = शुद्ध, पवित्र । द्यानत भजन सौरभ

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