Book Title: Dyanat Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachandra Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajkot

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Page 403
________________ (३१९) राग वसन्त कहै राघौ सीता, चलहु गेह, नैननिमें आय रह्यो सनेह ॥ कहै.॥ हमऊपर तो तुम ही उदास, किन देखों सुतमुख चन्द्रमास ॥ १॥ लछमन भामण्डल हनू आय, सब विनती करि लगि रहे पाय॥२॥ 'द्यानत' कछु दिन घर करो बास, पीछे तप लीज्यो मोह नास॥४॥ रघुपति रामचन्द्र सीताजी कहते हैं कि अब घर चलो ! यह कहते समय उनके नेत्रों में सीताजी के प्रति अगाध प्रेम झलक रहा है। तुम हमारी ओर तो उदास हो, हमसे रुष्ट हो। किन्तु चन्द्रमा के समान कान्तिवान अपने पुत्रों की ओर तो देखो ! उनका ख्याल करके ही घर चली चलो! देखो! लक्ष्मण, हनुमान और तुम्हारा भाई भामण्डल आदि सभी आकर तुम्हारे पाँव लगकर विनती करते हैं। द्यानतराय कहते हैं कि राजा राम का अनुरोध है कि कुछ दिन घर में रहकर गृहस्थ का जीवन व्यतीत करो तत्पश्चात् मोह का नाश करने के लिए तप कर लेना। राघौ = राम आचार्य रविषेण के 'पद्मपुराण' के कथानक के अनुसार रावण के घर में रहने के कारण लोकनिन्दा व लांछनवश सीता को निर्वासित कर दिया गया। निर्वासन के पश्चात् भी अपने सतीत्व को सिद्ध करने के लिए सीता को अग्निपरीक्षा देनी पड़ी। परीक्षा में निर्दोष सिद्ध होने के बाद श्रीराम सीता से घर चलने के लिए कहते हैं पर सीता अब घर चलने से अस्वीकार कर देती है और संन्यास धारण कर लेती है। प्रस्तुत भजन में राम द्वारा सीता को घर चलने का आग्रह करने का ही वर्णन है। द्यानत भजन सौरभ ३६९

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