Book Title: Dyanat Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachandra Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajkot

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Page 407
________________ (३२२) हथनापुर बंदन जइये हो । टेक॥ शान्ति कुंथु अर मल्ल विराजें, पूजा करि सुख पइये हो। हथनापुर. ॥१॥ श्रेयसकुमर भयो दानेश्वर, सो दिन अब लौं गइये हो।। हथनापुर. ॥ २ ॥ 'द्यानत' बन्दों थानक नामी, स्वामीकी लौं लइये हो। हथनापुर. ।। ३ ।। हे भव्य ! हस्तिनापुर की यात्रा करने के लिए, वंदन करने के लिए जाओ। वहाँ शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरहनाथ की प्रतिमाएं विराजमान हैं, उनकी पूजा कर आनन्द व लाभ प्राप्त करो। __ वहाँ राजा श्रेयांसकुमार जैसे दानी हुए हैं, जिन्होंने तीर्थकर आदिनाथ को सर्वप्रथम आहारदान दिया था, उस दिन का (अक्षय तृतीया का) गुणगान आज भी किया जाता है। द्यानतराय कहते हैं कि ऐसे प्रसिद्ध स्थान की वन्दना करो और प्रभु के गुणों का चिन्तवन करो, भक्ति करो, उनके गुणों से लौ (लगन) लगाओ। हस्तिनापुर के राजा श्रेयांस ने वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव को उनको मुनि अवस्था में छ माह के उपवास के बाद प्रथम आहार के रूप में इक्षुरस (गन्ने का रस) का आहार करवाया था, तब से यह दिन 'अक्षयतृतीया' के रूप में आज भी मान्य है। द्यानत भजन सौरभ ३७३

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