Book Title: Dyanat Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachandra Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajkot

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Page 400
________________ ( ३१६ ) राग गौरी राम भरतसों कहैं सुभाइ, राज भोगवो थिर मन लाइ ॥ टेक ॥ सीता लीनी रावन घात, हम आये देखनको भ्रात॥ राम ॥ १ ॥ माताको कछु दुख मति देहु, घरमें धरम करो धरि नेह ॥ राम ॥ २ ॥ 'द्यानत' दीच्छा लेंगे साथ, तात वचन पालो नरनाथ ॥ राम. ॥ ३ ॥ श्री राम अपने छोटे भाई भरत से कहते हैं कि हे भाई! अपना चित्त स्थिर करके इस राज्य का भोग करो। हम तो भाई को (लक्ष्मण को ) देखने को आए थे और रावण ने घात लगाकर सीताजी का हरण कर लियां । माता को कुछ भी, किसी प्रकार का दुःख न हो, उन्हें कष्ट न पहुँचे इसलिए तुम धैर्यपूर्वक घर में ही प्रेम से रहो । द्यानतराय कहते हैं कि राम ने भाई भरत को आश्वासन दिया कि हे राजन! हे भरत ! अपन / हम दीक्षा साथ लेंगे। इसलिए तुम अभी राज करो/राज सम्हाली और माता के वचन का पालन करो। ३६६ द्यानत भजन सौरभ

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