Book Title: Dyanat Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachandra Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajkot

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Page 393
________________ (३१०) नेमीश्वर खेलन चले, रंग हो हो होरी, सुगुन सखा संग भूप रंग, रंग हो हो होरी॥टेक॥ महा विराग बसन्तमें, रंग हो हो होरी। समझ सुवास अनूप रंग, रंग हो हो होरी॥नेमीश्वर.॥ वसन महाव्रत धारकै, रंग हो हो होरी! छिरके छिमा बनाय रंग, रंग हो हो होरी। पिचकारी कर प्रीतिकी रंग, रंग हो हो होरी। रीझ रंग अधिकाय रंग, रंग हो हो होरी॥नेमीश्वर.॥१॥ ज्ञान गुलाल सुहावनी रंग, रंग हो हो होरी। अनुभव अतर सुख्याल रंग, रंग हो हो होरी! प्रेम पखावज बस, रंग हो हो हो ... ... .... तत्त्व स्वपर दो ताल रंग, रंग हो हो होरी॥नेमीश्वर.॥२॥ संजम सिरनी अति भली रंग, रंग हो हो होरी। मेवा मगन सुभाव रंग, रंग हो हो होरी। सम रस सीतल फल लहै रंग, रंग हो हो होरी! पान परम पद चाव रंग, रंग हो हो होरी॥ नेमीश्वर.॥३॥ आतम ध्यान अगन भई रंग, रंग हो हो होरी। करम काठ समुदाय रंग, रंग हो हो होरी। धर्म धुलहड़ी खेलकै रंग, रंग हो हो होरी। सदा सहज सुखदाय रंग, रंग हो हो होरी॥ नेमीश्वर ॥ ४॥ रजमति मनमें कहति है रंग, रंग हो हो होरी। हम तजि भजि शिव नारि रंग, रंग हो हो होरी। 'द्यानत' हम कब होहिंगे रंग, रंग हो हो होरी। शिववनिताभरतार रंग, रंग हो हो होरी ।। नेमीश्वर. ॥ ५॥ धानत भजन सौरभ

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