Book Title: Dyanat Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachandra Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajkot

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Page 394
________________ श्री नेमीनाथ होली खेलने को निकले हैं। वे अद्भुत रंगों से होली खेल रहे हैं। उनके गुण ही उनके साथी हैं, उनसे ये रंग खेल रहे हैं । बसंत ऋतु में, वैराग्य, ज्ञान आदि सुगन्धित गुणों व अनुपम रंगों से वे होली खेल रहे हैं। महाव्रत के वसन-वस्त्र धारण किए हुए हैं और क्षमारूपी रंग बनाकर उन पर सर्वत्र छिड़क रहे हैं। ज्ञान आदि गुणों की आसक्ति के गहरे रंग में प्रीति की पिचकारी भर-भरकर वे निमग्न होकर होली खेल रहे हैं। ज्ञान की सुहावनी गुलाल हैं उसमें अनुभव का इत्र, शुभ विचारों का रंग है, सबके प्रति प्रेमरूपी पखावज के स्वर तथा तत्व व स्व तथा पर के भेदज्ञान की दो ताल का चिंतन-मनन विचार करके होली खेल रहे हैं। संयमरूपी विविधरंगोंवाली मिठाई, स्व-भाव का मनभाता मेवा, समतारूपी रसदार ठंडे फल और परमपद रूपी आनन्द का पान करते हुए रुचिसहित वे होली खेल रहे हैं। आत्मध्यान की अग्नि जलाकर, कर्मकाठ (ईंधन) को उसमें भस्म कर रहे हैं । 'सदा सहज सुखदाय रंगों के साथ वे धर्मरूपी धुलहंडी का खेल खेल रहे हैं। राजुल मन में कहती है कि हमको छोड़कर शिवनारी-शिवरमणी के साथ वे रंग खेल रहे हैं । छानतराय कहते हैं कि मोक्षरूपी स्त्री के रंग में रंगनेवाले के रंग में रंगकर हम कब होली खेलेंगे अर्थात् हमें ऐसा अवसर कब मिलेगा? ३६० धानत भजन सौरभ

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