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( ३१३ ) होरी आई आज रंग भरी है। रंग भरी रस भरी रस भरी है ॥ टेक ॥ वेतन पिय आये मन भाये, करुना केसर घोर धरी है ॥ १ ॥ ज्ञान गुलाल पीत पिचकारी, ध्यान महाधुनि होत खरी है ॥ २ ॥ 'द्यानत' सुमति कहै समतासों, अब मोपै प्रभु दया करी है ॥ ३ ॥
आज होली का रंग-भरा दिन आया है। यह दिन रंग से भरा है, रस से भरा है, नाना प्रकार के रसों से भरा है।
चैतन्य - प्रियतम आए हैं, मन को भा रहे हैं अर्थात् आज आत्मरुचि जागृत हुई है और वह मन को अच्छी लग रही हैं। करुणारूपी केसर घोल रखी है अर्थात् स्व-संवेदन की भावना से गहनरूप से ओत-प्रोत हो रहे हैं, भर रहे हैं।
ज्ञान की गुलाल और प्रेम की पिचकारी हैं, ध्यान में महाध्वनि अर्थात् अन्तर्निनद स्पष्ट गुंजायमान होता है।
द्यानतराय कहते हैं कि विवेकपूर्ण बुद्धि-विचार अर्थात् सुमति अपनी समतारूपी सखी से कहती है कि अब मुझ पर प्रभु ने कृपा की है कि मुझे समभाव की प्राप्ति हुई है, आत्मरुचि उत्पन्न हुई है।
द्यानत भजन सौरभ
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