Book Title: Dyanat Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachandra Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajkot

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Page 395
________________ ( ३११ ) पिया बिन कैसे खेलौं होरी ॥ टेक ॥ आतमराम पिया नहिं आये, मोकों होरी कोरी ॥ पिया. ॥ १ ॥ एक बार प्रीतम हम खेलें, उपशम केसर घोरी ॥ पिया ॥ २ ॥ 'द्यानत' वह समयो कब पाऊं, सुमति कह कर जोरी ॥ पिया. ॥ ३ ॥ - सुमति कह रही है अपने प्रियतम आत्मा के बिना मैं किससे होली खेलूँ? मेरा प्रिय आतम अर्थात् मेरी आत्मा अपने में नहीं रम रहा ( अर्थात् अपने घर पर नहीं आया ), तो मेरा होली का आनन्द का यह त्यौहार फीका है। कोरा है, निरर्थक है । एक बार उपशमरूपी केशर का रंग तैयार करके आत्मा के साथ होली खेलें अर्थात् कर्मरूपी रज नीचे बैठ जाए, जम जाए और आत्मस्वरूप की निर्मलता ऊपर प्रगट हो, वह मलरहित निर्मल हो जाए। - द्यानतराय कहते हैं कि सुमति हाथ जोड़कर कहती है कि वह अवसर मैं कब पाऊँगी ? द्यानत भजन सौरभ ३६१

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