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संसारमें साता नाहीं वे॥टेक॥ छिनमें जीना छिनमें मरना, धन हरना छिनमाही वे॥ संसार.॥१॥ छिनमें भोगी छिनमें रोगी, छिनमें छय-दुख पाहीं वे॥ संसार. ।। २ ।। 'धानत' लखके मुनि होवै जे, ते पार्दै सुख ठाही वे॥ संसार. ॥ ३॥
इस संसार में सुख नहीं है। यहाँ क्षण-क्षण में जीना, क्षण-क्षण में मरना और क्षण में ही धन को लट लेना होता रहता है। कभी किसी क्षण में खुब भोग भोगता है, तो कभी किसी क्षण में रोगग्रस्त हो जाता है और क्षण में ही दुःख पाकर क्षत हो जाता है, मर जाता है।
द्यानतराय कहते हैं कि संसार की यह दशा देखकर जो मनि/त्यागी/वैरागी हो जाते हैं, वे ही सुख प्राप्त करते हैं।
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धानत भजन सौरभ