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( २८२) यारी कीजै साधो नाल | टेक ।। आपद मेटै संपद भैंटे, बेपरवाह कमाल ।। यारी.॥१॥ परदुख दुखी सुखी निज सुखसों, तन छीने मन लाल ॥ यारी. ।। २ ।। राह लगावै ज्ञान जगावै, 'धानत' दीनदयाल ॥ यारी.॥३॥
हे साधो! हे भव्यजन ! संगति करो तो सज्जनों की करो, साधु की करो। उनके उपदेश को सुनो।
वे सज्जन, साधुजन सब आपदाओं को मिटा देते हैं, सुख-संपदा देते हैं। वे चिन्ता होकर महा रहते हैं -- पड़ा अद्भुत है यह।।
वे दूसरों के दुःख में दुःखी और अपने आत्म चिंतन में सुखी रहते हैं । अपनेतन की चिन्ता नहीं करते हैं और मन को वश में रखते हैं।
वे साधु पथ दर्शक हैं, उन साधुओं के चरण ही अनुकरणीय हैं, वे भव्यजनों को मोक्ष की राह पर अग्रसर करते हैं। वे लोगों को उपदेश देते हैं, उनके ज्ञान को जागृत करते हैं। वे असहाय के सहायक हैं, दयालु हैं।
नाल = साथ, संगति।
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घानत भजन सौरभ