________________
(२९०) साधजीने बानी तनिक सुनाई ।। टेक॥ गौतम आदि महा मिथ्याती, सरधा निहचै आई। साधजी.॥१॥ नृप विभूति छयवान विचारी, बारह भावन भाई। साधजी. ॥२॥ 'धानत' हीन शकति हू देखौ, श्रावक पदवी पाई।। साधजी. ॥३॥
गुरुवर ने यह वाणी थोड़ी-सी सुनाई, जिसको सुनकर महामिथ्यात्वी गौतम आदि हो ज्ञान होकर नायक के प्रति श्रद रजागृत हो गई।
जिसे सुनकर राजा ने भी अपने वैभव को नाशवान समझकर बारह भावनाओं का चिन्तन किया।
द्यानतराय कहते हैं, मैं अल्पबुद्धि व शक्तिहीन हूँ कि जिनवाणी सुनकर भी मैं अभी केवल श्रावकपद में ही ठहरा हुआ हूँ।
द्यानत भजन सौरभ