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(२८९) वे प्राणी! सुज्ञानी, जान जान जिनवानी । टेक॥ चन्द सूर हू दूर करें नहिं, अन्तरतमकी हानी ॥ ॥१॥ पच्छ सकल नय भच्छ करत है, स्यादवादमें सानी॥.॥२॥ 'द्यानत' तीनभवन-मन्दिरमें, दीवट एक बखानी॥वे. ॥३॥
वे ही मामी सानवान हैं, सुक्षाती हैं जिन्होंने जिनामी को जाना है अर्थात् उसका स्वाध्यायकर उसके मर्म को समझा है। ___ चन्द्र-सूर्य का (बाहरी) प्रकाश अंत:स्थल के अंधकार को अर्थात् अज्ञान को नष्ट करने में, उसे हटाने में समर्थ नहीं है; जिनवाणी के अध्ययन, मनन, चिंतन से जो ज्ञानानुभूति होती है, जागृति व अन्त:प्रकाश होता है, उससे अज्ञान का नाश होता है । सूर्य व चन्द्र का प्रकाश उस अज्ञानरूपी अंधकार को नष्ट करने में समर्थ नहीं है।
प्रमाण और नय सहित स्याद्वादमय वाणी सब पक्षों का सम्पूर्ण ज्ञान कराती है।
द्यानतराय कहते हैं कि तीन लोक के इस मन्दिर में जिनवाणी ही एक सार्थक दीपक है, पथ आलोकित करनेवाली है।
धानत भजन सौरभ