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जिनवानी प्रानी ! जान लै रे ॥ टेक ॥
छहों तस्य परत्राय गुन र मन नीके सरधान लै रे ॥ जिनवानी ॥ १ ॥ देव धरम गुरु निह धर उर, पूजा दान प्रमान लै रे ॥ जिनवानी ॥ २ ॥ 'द्यानह' जान्यो जैन बखान्यो, ऊँ अक्षर मन आन लै रे ॥ जिनवानी ॥ ३ ॥
हे प्राणी! तू जिनवाणी को जान ले, समझ ले ।
छहों द्रव्यों को उनकी गुण पर्याय सहित अच्छी तरह से श्रद्धान करले । देव, शास्त्र और गुरु का निश्चय से, हृदय से श्रद्धान करके, उनकी पूजा करके, दान करने का प्रमाण निश्चित करले व उसका निर्वाह कर
द्यानतराय कहते हैं कि जैनों द्वारा 'ऊँ' अक्षर को मन में धारण करके समझने का उपदेश दिया गया है।
छानत भजन सौरभ
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