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________________ ( २८७ ) जिनवानी प्रानी ! जान लै रे ॥ टेक ॥ छहों तस्य परत्राय गुन र मन नीके सरधान लै रे ॥ जिनवानी ॥ १ ॥ देव धरम गुरु निह धर उर, पूजा दान प्रमान लै रे ॥ जिनवानी ॥ २ ॥ 'द्यानह' जान्यो जैन बखान्यो, ऊँ अक्षर मन आन लै रे ॥ जिनवानी ॥ ३ ॥ हे प्राणी! तू जिनवाणी को जान ले, समझ ले । छहों द्रव्यों को उनकी गुण पर्याय सहित अच्छी तरह से श्रद्धान करले । देव, शास्त्र और गुरु का निश्चय से, हृदय से श्रद्धान करके, उनकी पूजा करके, दान करने का प्रमाण निश्चित करले व उसका निर्वाह कर द्यानतराय कहते हैं कि जैनों द्वारा 'ऊँ' अक्षर को मन में धारण करके समझने का उपदेश दिया गया है। छानत भजन सौरभ ३३१
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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