SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २८८ ) तारनकों जिनवानी ॥ टेक ॥ मिथ्या चूरै सम्यक पूरै जनम जरामृत हानी ॥ तारन ॥ १ ॥ } जड़ता नाशै ज्ञान प्रकाश, शिव-मारग-अगवानी ॥ तारन ॥ २ ॥ 'द्यानत' तीनों लोक व्यथाहर, परम-रसायन मानी ॥ तारन ॥ ३ ॥ संसार - सागर से पार उतारने के लिए अर्थात् अज्ञान को दूर करने के लिए जिनवाणी ही सक्षम व समर्थ है। यह मिथ्या पक्ष का नाश करती है, सम्यक् पक्ष को आलोकित करती हैं। यह जन्म, बुढ़ापा व मृत्यु की स्थिति का नाशकर अजर-अमर होने की राह बताती है । जिनवाणी अज्ञान का नाश करती है; ज्ञान का प्रकाश फैलाती हैं। मोक्षमार्ग पर अग्रसर करती है । द्यानतराय कहते हैं कि तीनों लोकों के कष्टों का हरण करनेवाली यह जिनवाणी परम रसायन है । ३३२ द्यानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy