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(२८५) गौतम स्वामीजी मोहि वानी तनक सुनाई॥टेक॥ जैसी वानी तुमने जानी, तैसी मोहि बताई ॥ गौतम.॥१॥ जा वानी” श्रेणिक समझ्यो, क्षायक समकित पाई।गौतम. ॥ २॥ 'धानत' भूप अनेक तरे हैं, वानी सफल सुहाई ॥ गौतम.॥३॥
हे गौतम स्वामी ! आपने हमें/मुझे प्रभु की दिव्यध्वनि का उपदेश तनिकसा, थोड़ा-सा सुनाया।
जैसी आपने सुनी, वैसी ही मुझे बताई।
उस वाणी को सुनकर श्रेणिक को आत्मस्वरूप का बोध हुआ और उनको क्षायिक सम्यक्त्व की उपलब्धि प्राप्त हुई, जागृति हुई।
द्यानतराय कहते हैं जिनको वह वाणी समझ में आई, ऐसे अनेक नृपति राजा भवसागर से पार हो गए।
धानत भजन सारभ
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