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( २७३ )
राग गौरी
हमारो कारज ऐसे होय ॥ टेक ॥
आतम आतम पर पर जानें, तीनों संशय खोय ।। हमारो ॥
अंत समाधिमरन करि तन तजि, होय शक्र सुरलोय । विविध भोग उपभोग भोगवै, धरमतनों फल सोय ।। हमारो ॥ १ ॥
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पूरी आयु विदेह भूप है, राज सम्पदा भोय कारण पंच लहै गहँ दुद्धर, पंच महाव्रत जोय ॥ हमारो ॥ २ ॥
तीन जोग थिर सहै परीसह, आठ करम मल धोय । 'द्यानत' सुख अनन्त शिव विलसे, जनमैं मरै न कोय ।। हमारो ।। ३ ।।
हे साधक ! हमारा कार्य इस प्रकार सिद्ध हो सकता है कि हम अपनी आत्मा को आत्मा जानें। इस आत्मा से भिन्न जो भी है वह दूसरा है, वह पर है, उसे पर जानें। उसमें संशय, विमोह व विभ्रम तनिक भी न करें अर्थात् स्व को 'स्व' और पर को 'पर' जानें।
अंत समय समाधिमरण करते हुए इस देह को छोड़ें और देवलोक में जाकर देवरूप में, इन्द्ररूप में अगला जन्म धारण करें जहाँ अनेक प्रकार के भोग व उपभोग उपलब्ध हैं उन्हें धर्म के फल रूप में भोग करें।
पंच महाव्रत के पालन व दुर्द्धर तप के फलरूप में, धर्म के फलरूप में ही विदेह क्षेत्र में राजा होकर राज-सम्पदा, भोग सामग्री प्राप्त होती है। इन पंच महाव्रत व दुर्द्धर तप से मोक्ष के कारणरूप पाँच लब्धियाँ प्राप्त होती हैं ।
१. क्षयोपशम लब्धि, विशुद्धि लब्धि, देशना लब्धि, प्रायोग्य लब्धि और करण लब्धि ।
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द्यानत भजन सौरभ