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मन, वचन, काय की चंचलता को रोककर स्थिर होवें तथा जो भी अन्य बाह्य परीषह आवें उनको समता व दृढ़तापूर्वक सहन करें; इस प्रकार अष्ट कर्मरूपी मैल को धोवें । द्यानतराय कहते हैं कि ऐसी ही क्रिया से कर्म-मल नष्ट होकर मोक्ष में अनन्तपगत रूप लक्ष्मी की प्राप्ति होती है अर्श जन्य व मरण नहीं होता।
द्यानत भजन सौरभ
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