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(२१४) वीतराग नाम सुमर, वीतराग नाम ॥ टेक॥ भजन बिना किये यार, होगा बदनाम ॥ वीतराग.॥ जाको करै धूमधाम, सो तो धूमधाम। पातशाह होय चुके, सर्यो कौन काम॥ वीतराग।।१॥ बातें परवीन करै, काम करै खाम। काल सिंह आवत है, पकर एक ठाम।। वीतराग.॥२॥ आठ जाम लागि रह्यौ, चाम निरख दाम। 'ग्रानत' कबहूँ न भूल, साहिब अभिराम॥ वीतराग. ॥ ३ ॥
हे जीव! तू केवल उसके नाम का स्मरण कर जिसके राग-द्वेष समाप्त हो गए हों। वह वीतराग है, उसके गुणगान का बहुमान किए बिना, तेरी सब जगह बदनामी ही होगी।
जिस पुद्गल के लिए तूने इतनी धूमधाम, इतना आडंबर कर रखा है, वह सब मात्र आडंबर है । अरे तुम बादशाह भी हो गए तो इससे तुम्हारा क्या प्रयोजन सिद्ध हुआ?
चतुराई की बातें करते हुए भी तू जो कार्य कर रहा है वे तो खामियों से, कमियों से भरे हुए हैं। जब कालरूपी सिंह आ जायेगा तो वह तुझे पकड़कर ले जावेगा।
तू अब तक आठों पहर अपनी देह की, चाम की ही देख-रेख करने, उसे निरखने-सँवारने में ही लगा रहा। अपनी चमड़ी को सहलाता-सँभालता रहा है। द्यानतराय कहते हैं कि तू कभी भी मत भूल कि तेरा साहिब, तेरा मालिक 'आत्मा' अत्यन्त सुन्दर है।
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धानत भजन सौरभ