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जग ठग मित्र न कोय वे ॥ टेक ॥
सब कोऊ स्वारथको साथी, स्वास्थ बिना न होय वे ॥ जग. ॥ १ ॥ यह दुनिया है चाहरबाजी, गाफिल होय न सोय वे ॥ जग. ॥ २ ॥ 'द्यानत' जन तिनपर बलिहारी, जे साधरमी लोय वे ॥ जग. ॥ ३ ॥
यह सारा संसार ठग - रूप है, यहाँ पर कोई भी अपना नहीं हैं, कोई भी मित्र नहीं है।
सब अपने-अपने कार्य के लिए, स्वार्थ के लिए साथी हैं। स्वार्थ के बिना कोई किसी का नहीं है।
यह दुनिया सब कोलाहल / कुटिलता से भरी हुई है, इसमें तू असावधान होकर मत सो ।
द्यानतराय कहते हैं कि मैं उन लोगों पर बलिहारी जाता हूँ जो साधर्मी हैं ।
चहर - कोलाहल, शोर 1
द्यानत भजन सौरभ
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