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(२४३) तेरो संजम बिन रे, नरभव निरफल जाय ॥ टेक ॥ बरष मास दिन पहर महूरत, कीजे मन वच काय ॥ तेरो. ॥१॥ सुरग नरक पशु गतिमें नाहीं, कर आलस छिटकाय॥ तेरो. ॥ २॥ 'द्यानत' जा बिन कबहुँ न सी., राजबिर्षे जिनराय॥ तेरो.॥ ३॥
. हे : समातेरा पर निकल बीत रहा है।
तू मन, वचन, काय से सदा अर्थात् प्रति समय, वर्ष, माह, दिन, प्रहर व मुहूर्त इसका (संयम का) पालन कर, इसको धारण कर ।
तू देव, नारकी व तिर्यंच पर्याय में भी आलस छोड़कर संयम का पालन कर ।
द्यानतरायजी कहते हैं - जिनराज भी इस संयम के अभाव में सिद्ध नहीं हुए थे।
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द्यानत भजन सौरभ