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परमारथ पंथ सदा पकरौ।। टेक॥ कै अरचा परमेश्वरजीकी, कै चरचा गुन चित्त धरौ॥ परमारथ.॥१॥ जप तप संजम दान छिमा करि, परधन परतिय देख डरौ।। परमारथ.॥२॥ 'धानत' ज्ञान यही है चोखा, ध्यानसुधामृत पान करौ।। परमारथ.॥३॥
हे भव्यप्राणी ! अपना कल्याण करने के लिए इस परम लाभकारी मार्ग पर चलो, आरोहण करो। ___ या तो तुम प्रभु की पूजा करो या हृदय से उनके गुणों की चर्चा करो, उनके गुणों का विचार करते रहो।
जीवन में जप, तप, संयम, दान, क्षमा आदि धारण करो। दूसरे के धन व दूसरे की स्त्री को देखकर, भय के कारण उनसे दूर रहो।
द्यानतराय कहते हैं कि यह ज्ञान ही अच्छा है। सदा ध्यानरूपी अमृत का पान करो।
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द्यानत भजन सौरभ