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(२६०) राग होरी
मिथ्या यह संसार है, झूठा यह संसार है रे ।। टेक॥ जो देही षट्रससों पोषै, सो नहिं संग चलै रे। औरनिको तोहि कौन भरोसो, नाहक मोह करै रे, भाई॥ मिथ्या. ॥१॥ सुखकी बातें बूझै नाहीं, दुखको सुक्ख लखै रे। मूढ़ोंमाहीं माता योग, साधौं पास ः रे, माई मिया ॥२॥ - झूठ कमाता झूठी खाता, झूठी जाप जप रे। सच्चा सांई सूझै नांहीं, क्यों कर पार लगैरे, भाई॥ मिथ्या. ॥ ३ ॥ जमसों डरता फूला फिरता, करता मैं मैं मैं रे। 'द्यानत' स्थाना सोही जाना, जो प्रभु ध्यान धेरै रे, भाई। मिथ्या.॥४॥
अरे भाई! यह संसार मिथ्या है, झूठा है, हेय है। जिस देह को छहों रसों के व्यंजनों से पोषण करते हो, वह तुम्हारे साथ नहीं जाता तो फिर औरों का तो भरोसा ही क्या है? तुम इनसे व्यर्थ ही मोह करते हो।
जो वास्तविक सुख है, उसके बारे में तो कुछ भी नहीं जानता। दुःख को सुख समझता है, सुख जानता है। तू अज्ञानियों के साथ मूर्ख-अज्ञानी होकर मस्त हो रहा है और साधुओं की संगति से डरता है। ___ तू झूठ ही कमाता है, झूठ ही खाता है और झूठ का ही जाप-रटन करता है। तुझे सच्चा साईं - आत्मा जो वास्तव में तेरा स्वामी है वह दीखता ही नहीं है, तो तू किस प्रकार पार हो सकेगा! __मृत्यु से तुझे डर लगता है, फिर भी अहं में डूबा हुआ मैं-मैं करता फिरता है। यानतराय कहते हैं कि जो सयाना है वह ही यह भेद जानता है और प्रभु का स्मरण - ध्यान करता है। सांई = स्वामी, मालिक।
खानत भजन सौरभ
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