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दान की महिमा बताते हुए कहते हैं कि दान देने से बहुत सुख मिलता है, ऐसे विचार करके कहा जाता है - निर्धन ब्राह्मण दान के कारण, अपार, बहुत, जिसका पार नहीं पाया जा सकता, ऐसे धन / रतन की प्राप्ति करते हैं ।
शील की महिमा बताते हुए कहते हैं कि घर छोड़कर जो वन में जाकर दृढ़ता से शील का पालन करते हैं और मुनियों के लिए जो साररूप महाव्रत हैं, उस धर्म को पालन करते हैं, इनकी तो बात हो क्या? अणुव्रत पालन करने वाली सीता ने शील के कारण ही अग्नि को जलधारा में परिवर्तित कर दिया।
तप की महिमा बताते हुए कहते हैं कि तप की महिमा कौन कहे, वह तो सभी नर और नारी जानते हैं। सिंह ने भी तनिक सी तपस्या की और देवकुमार हुआ अर्थात् स्वर्ग में देव हुआ ।
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भावना का महत्व बताते हुए कहते हैं कि जो सारे परिग्रह का बोझ उतारकर (सोलहकारण ) भावना भाते हैं, वे धन्य हैं। मेंढक पूजा के भाव के कारण ही स्वर्ग में जाकर देव हुआ ।
ये चारों रूप ही नमन करने योग्य हैं। मंगल करनेवाले हैं। ये ही लोक में उत्तम हैं और ये ही शरण हैं ।
कर्म जो जीव को सदा घातते हैं, यह धर्म उनसे बचाता है। द्यानतराय कहते हैं कि इस धर्म को कभी भी मत भूलो। यह संसार तो असार है- सारहीन है।
विधार विस्तार |
द्यानत भजन सौरभ
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