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माता, पिता, भाई, पत्नी, पुत्र सब स्वार्थ सधने तक ही मधुर व्यवहार करते हैं, स्वार्थ न सधने पर सब खारे हैं। कभी भाई शत्रु हो जाता है और कभी शत्रु भाई के समान प्यारा हो जाता है।
द्यानतराय कहते हैं कि ऐसे में भजन ही एकमात्र आधार हैं जो सांसारिक दुःखरूपी अग्नि में बाहर निकालता है ।
कार्यक
आचार्य भी शुकि
अनिवार = जिसका निवारण न किया जा सके; अनिवार " कभी-कभी।
धानत भजन सौरभ
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