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(२१२) रे! मन गाय लै, मन गाय लै, श्रीजिनराय॥टेक ॥ भवदुख चूरै आनंद पूरै, मंगलके समुदाय ।। रे मन. ॥१॥ सबके स्वामी अन्तरजामी, सेवत सुरपति पाय॥रे मन. ॥ २ ॥ कर ले पूजा और न दूजा, 'द्यानत' मन-वच-काय रे मन. ॥३॥
अरे मेरे मन! तू श्री जिनराय के गीत गा, उनका भजन कर।
इससे भव-भव के दुःखों का नाश होता है और सब मंगल होता है, शुभ के समूह का आगमन होता है।
वे सबके स्वामी हैं, अन्तर्यामी/सर्वज्ञ हैं । इन्द्र आदि देव भी उनके चरणों की पूजा करते हैं।
द्यानतराय कहते हैं कि तू भी मन, वचन, काय से इनकी पूजा- भक्ति कर। इनके समान दूसरा कोई नहीं है।
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धानत भजन सौरभ