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(२२९) कौन काम अब मैंने कीनों, . लीनों सर अवतार हो। टेक॥ गृह तजि गहे महाव्रत शिवहित, विफल फल्यो आचार हो॥ कौन.॥१॥ संयम शील ध्यान तप खय भयो, अव्रत विषय दुखकार हो॥ कौन. ।। २ ।। 'द्यानत' कब यह थिति पूरी है, लहों मुकतपद सार हो। कौन. ॥३॥
अरे, ऐसा मैंने कौन सा सुकार्य किया था, जिसके कारण मैंने स्वर्ग में जन्म लिया!
मैंने घर-बार छोड़कर मोक्ष की प्राप्ति हेतु महाव्रत को धारण किया, उनका पालन किया, उस आचरण का यह फल मिला कि मुझे देव पर्याय मिली । इस देव पर्याय में संयम, शील, ध्यान, तप आदि नष्ट हो गये और यहाँ विषय-भोग और अव्रत मिले जो दुखदायी हैं।
द्यानतराय कहते हैं कि अब यह स्थिति (आयु) कब पूरी हो और कब सारवान मोक्षरूपी पद की प्राप्ति हो! अर्थात् वह मनुष्य पर्याय कब मिले जिसमें संयम, तप, शील और ध्यान हो, क्योंकि इनकी चरमस्थिति से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है, उससे हीन स्थिति शुभ फल को ही दायक हो सकती है।
द्यानत भजन सौरभ
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