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तू ही मेरा साहिब सच्चा सोई । टेक ॥
काल अनन्त रुल्यो जगमाहीं, आपद बहुविधि पाई ॥ तू ही. ॥ १ ॥ तुम राजा हम परजा तेरे कीजिये न्याव न काई ॥ तू ही. ॥ २ ॥ 'द्यानत' तेरा करमनि घेरा. लेह छुड़ाय गुसाईं ॥ तू ही ॥ ३ ॥
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हे जिनवर ! तू ही मेरा सच्चा स्वामी है, मालिक है ।
अनन्त काल से मैं इस जगत में भटकता रहा और बहुत प्रकार के कष्ट सहे । आप राजा हैं, हम तेरी प्रजा हैं, क्या आप मेरे साथ न्याय नहीं करेंगे? द्यानतराय कहते हैं कि मैं तो आपका शिष्य, भक्त हूँ। करमों के घेरे से घिरा हुआ हूँ । हे स्वामी ! उनसे मुझको छुड़ा लो, मुक्त करो।
द्यानत भजन सौरभ
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