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________________ ( १८७ ) तू ही मेरा साहिब सच्चा सोई । टेक ॥ काल अनन्त रुल्यो जगमाहीं, आपद बहुविधि पाई ॥ तू ही. ॥ १ ॥ तुम राजा हम परजा तेरे कीजिये न्याव न काई ॥ तू ही. ॥ २ ॥ 'द्यानत' तेरा करमनि घेरा. लेह छुड़ाय गुसाईं ॥ तू ही ॥ ३ ॥ 2 हे जिनवर ! तू ही मेरा सच्चा स्वामी है, मालिक है । अनन्त काल से मैं इस जगत में भटकता रहा और बहुत प्रकार के कष्ट सहे । आप राजा हैं, हम तेरी प्रजा हैं, क्या आप मेरे साथ न्याय नहीं करेंगे? द्यानतराय कहते हैं कि मैं तो आपका शिष्य, भक्त हूँ। करमों के घेरे से घिरा हुआ हूँ । हे स्वामी ! उनसे मुझको छुड़ा लो, मुक्त करो। द्यानत भजन सौरभ २१७
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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