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________________ (१८८ ) तेरी भगति बिना धिक है जीवना ॥ टेक ॥ जैसे बेगारी दरजीको, पर घर कपड़ोंका सीवना ॥ तेरी. ॥ १ ॥ मुकट बिना अम्बर सब पहिरे, जैसे भोजनमें घीव ना ॥ तेरी. ॥ २ ॥ 'द्यानत' भूप बिना सब सेना, जैसे मंदिरकी नीव ना ॥ तेरी. ॥ ३ ॥ हे प्रभु | तेरी भक्ति के बिना यह जीवन जीना व्यर्थ है, निरर्थक है, तिरस्कार योग्य है। जैसे दरजी सारा दिन अन्य जनों के घरों के कपड़ों की सिलाई करता है, परन्तु उसे उन कपड़ों को पहनने का सुख नहीं मिलता। उसकी बेगार / श्रम व्यर्थ हो जाता है। उसी प्रकार तेरी भक्ति के बिना शेष सब कार्य बेगार ही है, अतः तेरी भक्ति के बिना यह जीवन जीना निरर्थक है, व्यर्थ है । जैसे कपड़े तो सब पहन लिए, पर सिर पर मुकुट नहीं है, सिर पर कुछ नहीं है तो पोशाक अधूरी-सौ रहती है। जैसे बिना स्निग्धता के, बिना चिकनाई के भोजन- नीरस-सूखा लगता है। वैसे ही तेरी भक्ति के बिना जीवन सूखा होता है, नीरस होता है, व्यर्थ होता है । द्यानतराय कहते हैं कि जैसे राजा के बिना सेना का होना निरर्थक है, नींव के बिना मन्दिर का बनाना निरर्थक है, वैसे ही तेरी भक्ति के बिना यह जीवन निरर्थक है, व्यर्थ है । ૨૧૮ धानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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