________________
(१२५) भाई! कौन धरम हम पालें ॥ टेक ।। एक कहैं जिहि कुलमें आये, ठाकुरको कुल गर लैं॥ भाई ॥ शिवमत बौध सु वेद नयायक, मीमांसक अरु जैना। आप सराहैं आतम गाहैं, काकी सरधा ऐना ॥ भाई, ॥१॥ परमेसुरपै हो आया हो, ताकी बात सुनी जै। पूर्णे बहुत न बोलैं कोई, बड़ी फिकर क्या कीजै॥ भाई.।। २ ।। जिन सब मतके मत संचय करि, मारग एक बताया। 'द्यानत' सो गुरु पूरा पाया, भाग हमारा आया। भाई.॥ ३ ।।
अरे भाई! हम किस धर्म के अनुयायी बनें? किस धर्म का पालन करें? एक कहता है कि जिस कुल में जन्म लिया, उस कुल के धर्म को क्यों छोड़ें!
शैव, बुद्ध, वैदिक, नैयायिक, मीमांसक और जैन सब अपने-अपने को सर्वोपरि व सच्चा बताते हैं, तब किस की श्रद्धा करें?
जिसने परमात्म पद प्राप्त कर लिया है, उसकी बात सुनो । सबको पूछो - बोलो कुछ मत। फिर किसको चिन्ता करना।
जिनेन्द्र/तीर्थंकर ने सबके मत की समीक्षाकर साररूप में एक ही मार्ग बताया हैं । द्यानतराय कहते हैं कि अत: उन्हें ही पूर्ण (जिसमें कोई कमी न हो) गुरु पाया। यह हमारा सौभाग्य है कि हमने ऐसा गुरु पा लिया।
१४२
द्यानत भजन सौरभ