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करुनाकर देवा || टेक ॥
एक जनम दुख कहि न सकत मुख, तुम सब जानत भेवा ॥ करुना. ॥ १ ॥ हूं तो अधम तुम अधम उधारन, दोउ वानिक नव एवा ॥ करुना ॥ २ ॥ 'द्यानत' भाग बड़े तैं पाये, भूलौंगा नहिं सेवा ॥ करुना. ॥ ३ ॥
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हे देव! मुझ पर करुणा करो - दया करो 1
मैं अनन्त जन्मों से दुःखी हूँ पर एक जन्म के दुःखों को भी आपसे कहने में समर्थ नहीं हूँ, आप सब रहस्य की बात जानते हैं ।
मैं तो अधम हूँ, पापी हूँ और आप पापियों का उद्धार करनेवाले हो। दोनों ही अपना नफा-नुकसान देखनेवाले बनिए हैं ।
द्यानतराय कहते हैं कि बड़े भाग्य से मुझको आप मिले हैं, मैं आपकी सेवा करना नहीं भूलूँगा ।
भेषा
= रहस्य की बात; एवा - ही व भी।
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यानंत भजन सौरभ