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________________ करुनाकर देवा || टेक ॥ एक जनम दुख कहि न सकत मुख, तुम सब जानत भेवा ॥ करुना. ॥ १ ॥ हूं तो अधम तुम अधम उधारन, दोउ वानिक नव एवा ॥ करुना ॥ २ ॥ 'द्यानत' भाग बड़े तैं पाये, भूलौंगा नहिं सेवा ॥ करुना. ॥ ३ ॥ ( १६९ ) हे देव! मुझ पर करुणा करो - दया करो 1 मैं अनन्त जन्मों से दुःखी हूँ पर एक जन्म के दुःखों को भी आपसे कहने में समर्थ नहीं हूँ, आप सब रहस्य की बात जानते हैं । मैं तो अधम हूँ, पापी हूँ और आप पापियों का उद्धार करनेवाले हो। दोनों ही अपना नफा-नुकसान देखनेवाले बनिए हैं । द्यानतराय कहते हैं कि बड़े भाग्य से मुझको आप मिले हैं, मैं आपकी सेवा करना नहीं भूलूँगा । भेषा = रहस्य की बात; एवा - ही व भी। १९८ यानंत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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