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________________ (१७ :: :: :: : ... .. .. . किसकी भगति किये हित होहि, झूठ बात ना भावै मोहि ॥ टेक॥ राम भजो दूजो जग नाहिं, आयो जोनीसंकटमाहि ॥ किसकी,॥१॥ कृष्ण भजो किन तीनों काल, निरदै झै मार्यो शिशुपाल ।। किसकी.॥ २ ।। ब्रह्मा भजो सर्वजग-व्याप, खोई सृष्टि सह्यो दुख आप।किसकी. ॥ ३ ॥ रुद्र भजो सव” सिरदार, सब जीवनिको मारनहार॥किसकी. ॥ ४॥ एक रूपको कीजे ध्यान, चिन्ता करै उसे हैरान॥ किसकी.॥ ५ ॥ भजो गनेश सदा रे! भाय, सो गजमुख परगट पशुकाय ॥ किसकी.॥६॥ इन्द्र भजो निवसै सुरलोय, सो भी मरै अमर नहिं होय। किसकी. ॥७॥ देवी भजो भऊँ सब लोग, बकरे मारै महा अजोग ।। किसकी.॥८॥ भजो शीतला थिर मन लाय, देखो! डॉयनि लड़के खाय॥किसकी.॥९॥ किनहिं न जान्यो अपरंपार, झूठे सरब भगत संसार ॥ किसकी. ॥ १०॥ 'द्यानत' नाम भजो सुखमूल, सो प्रभु कहां किधौं नभ-फूल ॥किसकी. ॥११॥ अरे मन ! किसकी भक्ति करें कि जिससे हित होवे? झूठी बात मुझे अच्छी नहीं लगती। कहते हैं कि राम के अलावा इस दुनिया में दूसरा कोई भजनीय नहीं है, पर उन्होंने तो स्वयं ने ही इस भव में संकट सहे हैं । भव-भ्रमण के संकट सहे हैं ! कहते हैं कृष्ण को तीनों काल भजो, पर उनने भी निर्दयता से, दयाहीन होकर शिशुपाल का वध किया था। यदि ब्रह्मा को भजते हैं जो सब जगह व्याप्त बताया जाता है, तो संसार को खोकर वह आप स्वयं दु:खी हो रहा है। द्यानत भजन सौरभ १९९
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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