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________________ (१६८) ए मान ये मन कीजिये भज प्रभु तज सब बात हो ॥ टेक॥ मुख दरसत सुख बरसत प्रानी, विघन विमुख है जात हो। ए मन.॥ १॥ सार निहार यही शुभ गतिमें, छह मत मानै ख्यात हो॥ए मन.॥२॥ 'द्यानत्त' जानत स्वामि नाम धन, जस गावं उठि प्रात हो। ए मन.॥३।। ऐ मेरे मन। तू मेरी बात मान लें और सब कुछ छोड़कर मात्र प्रभु का .भजनकर...:..: ::::.:.::. .. ... .. प्रभु के दर्शन से सुख की अनुभूति होती है, उनके दर्शन से विघ्न विमुख, दूर हो जाते हैं। इस मनुष्य गति में यह ही साररूप है यही शुभ है । छहों दर्शनों में, मतों में यह ही बात बताई गई है, कही गई है। द्यानतराय कहते हैं कि ऐसे प्रभु का नाम ही धन हैं।धन्य है । इसलिए प्रतिदिन उठकर उसका गुण-वंदन कर, स्मरण कर। धानत भजन सौरभ १९७
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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