________________
कालाजी का सु
बहुत तीर्थ किए, बहुत पत्थरों को पूजा, पर राम कहीं न मिलते, यह सबसे बड़ी हैरानी है ।
राम से मिलने के लिए बहुत-सा दान किया। आठ पहर अर्थात् दिन-रात तोते की तरह उनका नाम रटता रहा, पर उसका स्वरूप नहीं पहचान सका ।
कोई कहे राम ( आत्मा / भगवान ) नीचे हैं, कोई कहे ऊपर है, पर उसका कहीं कोई ठिकाना नहीं मिला। यह सब देखने-जाननेवाला कौन है? वही तो आत्मा है, राम है यह समझ नहीं पाया
वेद आदि सांसारिक ग्रन्थ पढ़े, कई प्रकार के तप किए, जाप जपे - जपाए, रात-दिन कुचेष्टाएँ करता रहा और फिर भी अपना कल्याण चाह रहा है !
अरे, राम तो घट घट में, हर प्राणिदेह में व्याप्त है, कहीं दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। जैसे चकमक में आग उत्पन्न होने की योग्यता छिपी रहती हैं, ऐसे ही इस देह में भगवान छिपा है ।
आँख के आगे एक छोटे-से तिनके के आ जाने से, उसकी ओट में पहाड़ दिखाई नहीं देता है । उसी प्रकार द्यानतराय कहते हैं कि अपना चैतन्यस्वरूपी आत्मा तेरे अत्यन्त निकट है, तेरे अपने पास ही है फिर भी वह दिखाई नहीं देता, उसे ही लख-देख |
१५६
धानत भजन सौरभ