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हुआ और बहुत दुःख पाए, न् दुःख बताये नहीं जा सकते। कभी भूख व प्यास के दुःखोंवाली पराधीन और पीड़ित पशुगति पाई जिसमें अनेक बार बेचा गया।
नरक में छेदन- भेदन के बहुत दु:ख भुगते । आँखों की कोमल पुतलियाँ अग्नि से जलाई गई। शीत व ताप, दुर्गंध, रोग आदि के दुःख भोगे, जिसे सर्वज्ञदेव श्री जिनवर ही जानते हैं।
इस संसाररूपी वन में भ्रमण करते-करते कभी देवगति पाई और देव कहलाया । वहाँ भी दूसरों के वैभव को देख-देखकर ईर्ष्यावश दुःखी होता रहा और मृत्यु का समय निकट आने पर दुःखी हुआ ।
इस प्रकार पाप के कारण नरक गति व तिर्यंच गति में तथा पुण्य के कारण देव बनकर अनन्तकाल बिता दिया। जब पाप और पुण्य बराबर हुए तब कहीं मनुष्य देह पाई, उसमें भी कभी नीच प्रवृत्तिवाला हुआ, कभी गर्भपात आदि द्वारा अल्प आयुवाला हुआ, कभी जन्म होते ही सताया गया । जवानी में धर्म के प्रति रुचि नहीं हुई, उस समय तन, धन, पुत्र आदि में रमकर सुख मानने लगा।
हे भाई! इस प्रकार कभी स्त्री, पुरुष, नपुंसक होकर तू सारा जगत घूम चुका, भ्रमण कर चुकी । द्यानतराय कहते हैं कि तू श्रद्धासहित मुनिव्रत ग्रहणकर, उसका पालन कर जिससे देह से छूटकर तू अमर हो जाए, जन्म-मरण से छुटकारा पा जाए।
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द्यानत भजन सौरभ