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द्यानतरायजी कहते हैं कि लोक में प्रसिद्ध उक्ति है कि हंस और मेंढक दोनों जल में ही रहते हैं पर दोनों में बहुत अन्तर है, भेद है, इनका भेद (मेढक और हेस) जिसने देखा है, अनुभव किया है, वह ही वास्तविकता जानता है। उसी प्रकार जिसने आत्मा व जड़ के भेद को जान लिया, अनुभव कर लिया वह ही आत्मा को जानता :
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कल्प - एक उत्सर्पिणी काल तथा एक अवसर्पिणी काल की कुल अवधि: बिहान = सुबह; पखाणा = कहावत, लोकोक्ति ।
द्यानत भजन सौरभ
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