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(२८) अब मोहि तारि लै नेमिकुमार ॥ टेक॥ चहुँगत चौरासी लख्ख जौनी, दुखको वार न पार ।। अब.।।१।। करम रोग तुम वैद अकारन, औषध वैन-उचार॥अब.॥२॥ 'द्यानत' तुम पद-यंत्र धारधर, भव-ग्रीषम-तप-हार अब. ॥३॥
हे नेमिनाथ ! मुझको अब तार लो - मुझको पार लगा दो। चारों गति की चौरासी लाख योनियों के दु:खों का कोई पार नहीं है।
कर्मरोग के निवारण के लिए आप सहजरूप से, बिना कारण के कुशल वैद्य हैं । आपके वैन (वचन), वाणी, दिव्यध्वनि ही, उसका उपचार है।
द्यानतराय कहते हैं कि मैं आपके चरण-कमलरूपी मंत्र को धारण करूँ जो । भव-भत्र के ताप को दूर करनेवाले हैं।
झानत भजन सौरभ