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(४१) पिय वैराग्य लियो है, किस मिस लेहुं मनाई ॥टेक॥ मो मन वे उन मनमें मैं ना, काज होय क्यों माई। पिय. ॥१॥ सब सिंगार उतार सखी री, तिन विन कछु न सुहाई। पिय. ॥२॥ 'द्यानत' जा विधित वर रीझैं, सो विधि मोहि बताई। पिय.॥३॥
राजुल कह रही हैं - हे सखी ! मेरे प्रियतम को वैराग्य हो गया। अब उन्हें किस बहाने से मनाऊँ?
मेरे मन में तो वे बसे हैं, पर मैं उनके मन में नहीं हूँ। हे माई ! तब मेरा कार्य .. कैसे हो?
हे सखी, मेरे सब श्रृंगार उतार दे । उनके बिना. मुझे ये कुछ नहीं भा रहे हैं, नहीं सुहा रहे हैं।
द्यानतराय कहते हैं कि जिस विधि से नेमीश्वर रीझ सकें मुझे वह विधि, वह तरीका, वह व्यवस्था बताओ जिससे मैं उन्हें रिझा सकूँ!
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धानत भजन सौरभ